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नेपाल के पशुपतिनाथ मन्दिर की रहस्य

 किया पशुपतिनाथ स्वयं महादेव की इच्छा से प्रकट हुआ था?

चार युगों से जुड़ा हुआ है मंदिर के गर्भ गृह में आम लोगों का प्रवेश क्यों निषेध है?

चार युगों से जुड़ा हुआ है मंदिर के गर्भ गृह में आम लोगों का प्रवेश क्यों निषेध है?

महादेव आज भी किसी रूप में यहा विराजमान है और क्या यहां आने मात्र से पापों का नाश हो जाता है। नेपाल की राजधानी काठमांडू में स्थित पशुपतिनाथ मंदिर सिर्फ एक मंदिर ही नहीं बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा पौराणिक रहस्यों और चमत्कारिक घटनाओं का केंद्र है। यह स्थान केवल श्रद्धालुओं को ही नहीं बल्कि इतिहासकारों और वैज्ञानिकों को भी चौंकाता है। क्या सच में यह मंदिर स्वयंभू है या फिर इसे किसी राजा द्वारा बनवाया गया था?

क्यों यहां की आरती और मंत्रों का उच्चारण पूरे वातावरण को दिव्य बना देता है और क्या यह सच है कि जब भी नेपाल किसी संकट में होता है तब मंदिर से कोई संकेत मिलता है मंदिर के गुप्त द्वारों का रहस्य क्या है और इन्हें आज तक क्यों नहीं खोला गया और क्या इस मंदिर का संबंध हिमालय के किसी गुप्त लोक से है यह निउज से आपको ले चलेगी पशुपतिनाथ मंदिर के रहस्यमय गलियारों और प्राचीन कथाओं की दुनिया में हम खोजें इतिहास धर्म और विज्ञान के आधार।

यह एक मंदिर से कहीं अधिक शिव का सजीव धाम बनाते हैं। क्या आप तैयार हैं इस अनोखी यात्रा के लिए जहां आस्था और रहस्य एक साथ चलते हैं और जहां हर भक्त को शिव की उपस्थिति का एहसास होता है दुनिया भर में भगवान शिव के अनगिनत धाम है जिनमें से हर एक की अपनी अलग महिमा है जहां हर पत्थर में एक कहानी छुपी है और साक्षात भोलेनाथ का निवास है आज हम जिस दिव्य धाम की बात करने जा रहे हैं वह ना सिर्फ 12 ज्योति लिंगों में से एक है बल्कि यह भक्तों के लिए आस्था शक्ति और आशीर्वाद का अटूट स्रोत भी है।

इस पवित्र स्थान के बारे में विस्तार से जानेंगे और साथ ही इसकी पौराणिक कथाओं स्थापत्य कला और अनोखी परंपराओं के बारे में भी चर्चा करेंगे मैं बात कर रहा हूं पशुपतिनाथ मंदिर की जिसे ना केवल नेपाल बल्कि पूरे विश्व में पवित्र और रहस्यमय माना जाता है नेपाल का पशुपतिनाथ मंदिर यह केवल एक मंदिर नहीं बल्कि हिंदू धर्म के सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक माना जाता है।

नेपाल में पशुपतिनाथ का मंदिर काठमांडू के पास देव पाटन गांव में बागमती नदी के किनारे स्थित है। मंदिर में भगवान शिव की एक पांच मुख वाली मूर्ति है। चारों दिशाओं में एक-एक मुख और एक मुख ऊपर की ओर है प्रत्येक मुख के दाएं हाथ में रुद्राक्ष की माला और बाएं हाथ में कमंडल मौजूद है कहते हैं कि यह पांचों मुख अलग-अलग दिशा और गुणों का परिचय देते हैं पूर्व दिशा की ओर वाले मुख को तत्पुरुष कहा जाता है। पश्चिम की ओर वाले मुख को स्योत कहते हैंउत्तर दिशा की ओर वाले मुख को वाम वेद या अर्धनारीश्वर कहते हैंदक्षिण दिशा वाले मुख को अघोरा कहते हैं। और जो मुख ऊपर की ओर है उसे ईशान मुख कहा जाता है। मान्यता हे की पशुपतिनाथ मंदिर का ज्योतिर्लिंग पारस पत्थर के समान है इस मंदिर में भगवान शिव की मूर्ति तक पहुंचने के लिए चार दरवाजे बने हुए हैं वे चारों दरवाजे चांदी के हैं। पश्चिमी द्वार के ठीक सामने शिवजी के बैल नंदी की विशाल प्रतिमा है। जिसका निर्माण पीतल से किया गया हैइस परिसर में वैष्णव और शैव परंपरा के कई मंदिर और प्रतिमाएं मौजूद हैं पशुपतिनाथ मंदिर को शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है।

पशुपतिनाथ मंदिर को केदारनाथ मंदिर का आधा भाग माना जाता है यह मंदिर हिंदू और बौद्ध वास्तुकला का एक उत्कृष्ट मिश्रण है। मुख्य पगोड़ा शैली का मंदिर सुरक्षित आंगन में स्थित है जिसका संरक्षण नेपाल पुलिस द्वारा किया जाता है यह मंदिर लगभग 264 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है जिसमें 518 मंदिर और स्मारक सम्मिलित हैं। मंदिर की छत का निर्माण तांबे से किया गया हैजिन पर सोने की परत चढ़ाई गई है। मंदिर वर्गाकार के एक चबूतरे पर बना है जिसकी आधार से शिखर तक की ऊंचाई 23 मीटर है मंदिर का शिखर सोने का बना है जिसे गजु कहा जाता है।

मंदिर परिसर के भीतर दो गर्भगृह हैंभीतरी गर्भगृह वह स्थान है। जहां शिव की प्रतिमा स्थापित है जबकि बाहरी गर्भगृह एक खुला गलियारा है भीतरी आंगन में मौजूद मंदिर और प्रतिमाओं में वासुकी नाथ मंदिर उन्मत्ता भैरव मंदिर सूर्यनारायण मंदिर कीर्ति मुख भैरव मंदिर बूदा आनिल कंठ मंदिर हनुमान मूर्ति और 184 शिवलिंग प्रमुख रूप से शामिल हैजबकि बाहरी परिसर में राम मंदिर विराट स्वरूप मंदिर 12 ज्योतिर्लिंग और 15 शिवालयों के साथ गुह्येश्वरी मंदिर के दर्शन किए जाते हैं।

पशुपतिनाथ मंदिर के बाहर आर्य घाट स्थित है पौराणिक काल से ही केवल इसी घाट के पानी को मंदिर के भीतर ले जाने का प्रावधान है। नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर को कुछ मायनों में तमाम मंदिरों में सबसे प्रमुख माना जाता है पशुपति का अर्थ है पशु मतलब जीवन और पति मतलब स्वामी या मालिक यानी जीवन का मालिक या जीवन का देवता इस मंदिर की एक काफी सख्त परंपरा है। इस अंतरराष्ट्रीय तीर्थ के दर्शन के लिए भारत ही नहीं बल्कि विदेशों से भी असंख्य यात्री और पर्यटक काठमांडू पहुंचते हैं। शिव के एक रूप पशुपति को समर्पित यह हिंदू मंदिर बागमती नदी के पास नेपाल के काठमांडू में स्थित है। इस मंदिर को 1979 में विश्व धरोहर स्थल के रूप में वर्गीकृत किया गया था। पशुपतिनाथ मंदिर काठमांडू का सबसे पुराना हिंदू मंदिर है। इस मंदिर की उत्पत्ति पूर्व वैदिक काल की मानी जाती है नेपाल महात्म और स्कंद पुराण के हिमखंड के अनुसार यहां के देवता ने पशुपति के रूप में अत्यधिक प्रसिद्ध प्राप्त की थी।

पशुपति मंदिर से बहुत पौराणिक कहानियां भी जुड़ी हुई है नेपाल महात्मा और हिव खंड पर आधारित स्थानीय कथा के अनुसार वाराणसी में देवताओं के स्वामी भगवान शिव निवास करते थे। शिव की महिमा पूरे त्रिलोक में विख्यात थी और उनके बिना वाराणसी अधूरी लगती थी लेकिन एक दिन भगवान शिव रांसी छोड़कर हिमालय की ओर चले गए। देवताओं को जब यह झांत हुआ तो वे चिंतित हो उठे और शिव को वापस लाने का उपाय खोजने लगे भगवान शिव चलते-चलते नेपाल की पावन बागमती नदी के किनारे आ पहुंचे वहां एक घना जंगल था जिसे मृग स्थली कहा जाता था। शिव ने वहां एक चित्तीदार हिरण का रूप धारण किया और गहरे ध्यान में लीन हो गए जब देवताओं को यह पता चला कि शिव वहां है तो वे भी उनके पास पहुंचे और उनसे विनती करने लगे हे। महादेव कृपया वाराणसी लौट आइए आपके बिना वह नगरी अधूरी है लेकिन भगवान शिव अब हिमालय की इस भूमि को छोड़ना नहीं चाहते थे उन्होंने छलांग लगाई और नदी के दूसरे किनारे पहुंच गए इस दौरान उनके सींग के चार टुकड़े हो गए यहीं पर भगवान पशुपति चतुर्मुख लिंग के रूप में प्रकट हुए तभी से यह स्थान पशुपतिनाथ के नाम से प्रसिद्ध हो गया।

दूसरी कथा एक चरवाहे से जुड़ी है माना जाता है कि काठमांडू की हरी भरी घाटियों में एक ग्वाला अपनी गायों को चराने ले जाता था उसकी सबसे प्रिय गाय हर रोज एक विशेष स्थान पर जाकर अपने आप दूध गिरा देती थी यह देखकर ग्वाला हैरान था आखिर वहां ऐसा क्या था जो उसकी गाय उस स्थान को इतना पूजती थी। ग्वाले ने अपने गांव के बुजुर्गों को यह बात बताई जब लोगों ने उस स्थान को खोदा तो उनके सामने एक अद्भुत शिवलिंग प्रकट हुआ यह कोई साधारण शिवलिंग नहीं था बल्कि ऐसा प्रतीत होता था जैसे यह स्वयं धरती की गोद से प्रकट हुआ हो गांव वालों ने इसे भगवान शिव का संकेत माना और वहां एक भव्य मंदिर बनाने का निश्चय कियायही वह स्थान था जहां बाद में पशुपतिनाथ मंदिर बना।

तीसरी कथा भारत के उत्तराखंड राज्य से जुड़ी एक पौराणिक कथा से संबंधित है इस कथा के अनुसार इस मंदिर का संबंध केदारनाथ मंदिर से है। कहा जाता है कि कुरुक्षेत्र की लड़ाई के बाद अपने ही बंधुओं की हत्या करने की वजह से पांडव बेहद दुखी थे उन्होंने अपने भाइयों और सगे संबंधियों को मारा था जिसे गोत्र वध कहा जाता है। वे अपनी करनी पर पछता रहे थे और खुद को अपराधी महसूस कर रहे थे इस दोष से मुक्त होने के लिए वे भगवान शिव की खोज में निकल पड़े लेकिन शिव नहीं चाहते थे कि जो जगत गण्य कांड उन्होंने किया है उसका प्रायश्चित उन्हें इतनी आसानी से मिल जाए जब पांडव शिव के पास पहुंचे तो शिव ने एक बैल का रूप धारण कर लिया और भागने लगे। परंतु पांडवों ने उन्हें पहचान लिया और उनका पीछा किया इस दौरान भगवान शिव जमीन में लुप्त हो गए और जब वे पुनः प्रकट हुए तो उनके शरीर के टुकड़े अलग-अलग स्थानों पर बिखर गए।

नेपाल के पशुपतिनाथ में उनका मस्तक गिरा केदारनाथ में बैल का कूबड़ गिरा तुंगनाथ में बैल की दो आगे की टांगे गिरी मध्य महेश्वर में नाभि वाला हिस्सा गिरा कल्पनाथ में बैल के सींग गिरे इसलिए कहा जाता है कि जो भी पशुपतिनाथ के दर्शन करता है। उसे केदारनाथ भी अवश्य जाना चाहिए चौथी कथा मध्यकाल से जुड़ी है जब भारत और नेपाल पर आक्रमण हो रहे थे एक मुगल शासक ने पशुपतिनाथ मंदिर को नष्ट करने की योजना बनाई। वह अपनी विशाल सेना लेकर मंदिर की ओर बढ़ा लेकिन जैसे ही वे मंदिर के पास पहुंचे अचानक हजारों की संख्या में मधुमक्खियां उन पर टूट पड़ी मुगल सेना पूरी तरह बिखर गई और कई सैनिक घायल हो गए यह देखकर शासक ने हमला रोक दिया और मंदिर की ओर एक भी कदम आगे बढ़ाने की हिम्मत नहीं की। स्थानीय लोग इसे भगवान शिव की शक्ति मानते हैं और कहते हैं कि स्वयं महादेव ने अपने मंदिर की रक्षा की थी।

इस मंदिर का पुनर्निर्माण शिवदेव नामक एक मध्ययुगीन राजा ने 1099 से 1126 ईसवी में करवाया था। फिर अनंत मल्ला ने इसमें एक छत जोड़कर इसका जीर्ण उद्धार किया था दो मंजिला मंदिर के चारों ओर और भी मंदिर बनाए गए हैं। जिनमें 14वीं शताब्दी के राम मंदिर के साथ वैष्णव मंदिर परिसर और 11वीं शताब्दी की पांडुलिपि में उल्लिखित गुहेश्वरा शामिल है।

पशुपतिनाथ मंदिर में भगवान की सेवा करने के लिए 747 से ही नेपाल के राजाओं ने भारतीय ब्राह्मणों को आमंत्रित किया था। बाद में माला राजवंश के एक राजा ने दक्षिण भारतीय ब्राह्मण को मंदिर का प्रधान पुरोहित नियुक्त कर दिया दक्षिण भारतीय भट्ट ब्राह्मण ही इस मंदिर के प्रधान पुजारी नियुक्त होते रहे थे। वर्तमान में भारतीय ब्राह्मणों का एकाधिकार खत्म कर नेपाली लोगों को पूजा का अधिकार सौंप दिया गया। ऐसा कहा जाता है कि मंदिर के पुजारियों में से कई को रात्रि के समय एक रहस्यमय अदृश्य पुजारी के दर्शन होते हैं। कई पुजारियों ने अनुभव किया कि जब वे मंदिर में रात को अकेले ध्यान करते हैं तो उन्हें एक दिव्य रोशनी दिखाई देती है। मंत्रों की गूंज सुनाई देती है कई भक्तों का मानना है कि यह स्वयं भगवान शिव है जो रात्रि में अपने मंदिर में पूजा करते हैं पशुपतिनाथ मंदिर के संबंध में यह मान्य ता है कि जो भी व्यक्ति इस स्थान के दर्शन करता है उसे किसी भी जन्म में फिर कभी पशु योनि प्राप्त नहीं होती लेकिन एक नियम यह भी है कि जब भी मंदिर जाएं सबसे पहले नंदी के दर्शन ना करें अन्यथा पुनर्जन्म में पशु योनि प्राप्त हो सकती है। कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति इस मंदिर में ध्यान करता है उसकी सभी समस्याएं समाप्त हो जाती हैं।

पशुपतिनाथ मंदिर सिर्फ नेपाल ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के हिंदुओं के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र है मंदिर में केवल हिंदू धर्म के लोग प्रवेश कर सकते हैं। यहा केवल हिंदू धर्मावलंबियों को ही यहां प्रवेश की अनुमति है। सूर्योदय से पहले मुख्य गर्भ ग्रह में प्रवेश निषिद्ध है। ऐसा माना जाता है कि सूर्योदय से पहले भगवान पशुपति स्वयं ध्यान में लीन होते हैं इसलिए इस समय मंदिर के गर्भ ग्रह में प्रवेश वर्जित है। यह भगवान शिव की में पंचामृत दूध दहीघीशहद और गंगाजल से अभिषेक किया जाता है। कहा जाता है कि इस अनुष्ठान से नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती है और मानसिक शांति प्राप्त होती है। महामृत्युंजय मंत्र के जाप से व्यक्ति को असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख समृद्धि आती है।

पशुपतिनाथ मंदिर में प्रवेश करने से पहले नंदी भगवान शिव के वाहन की मूर्ति स्थापित है। नेपाल में जब भीषण भूकंप आया जिससे पूरा क्षेत्र हिलने लगा उस समय मंदिर भी हिलने लगा और उसके गिरने का खतरा होगया तभी मंदिर में स्थापित नंदी की मूर्ति से एक तेज प्रकाश निकला और पूरा भूकंप शांत हो गया। स्थानीय भक्त मानते हैं कि यह भगवान शिव की कृपा थी और नंदी ने मंदिर को बचा लिया। महाशिवरात्रि के दिन पशुपतिनाथ मंदिर में सबसे बड़ा उत्सव मनाया जाता है। इस दिन पूरे मंदिर को लाखों दीपों से सजाया जाता हैरात भर भगवान शिव की आराधना होती है और भजन कीर्तन चलता रहता है। हजारों श्रद्धालु गंगा स्नान के बाद मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं साधु संत मंदिर परिसर में विशेष साधना करते हैं।

सन 1934 के बाद पहली बार नेपाल में इतना प्रचंड तीव्रता वाला भूकंप आया जिसमें 8000 से अधिक मौतें हुई 2000 से अधिक लोग घायल हुए। भूकंप के झटके चीन भारत बांग्लादेश और पाकिस्तान तक महसूस किए गए। नेपाल के साथ-साथ चीन भारत और बांग्लादेश में भी लगभग 250 लोगों की मौत हुई। भूकंप की वजह से एवरेस्ट पर्वत पर हिमस्खलन आ गया जिससे 17 पर्वतारोहियों की मृत्यु हो गई। ठीक वैसे ही जैसे साल 2013 में उत्तराखंड भयानक बाढ़ से जूझ रहा था लेकिन जिस तरह उत्तराखंड में आई बाढ़ बाबा भोलेनाथ के केदारनाथ धाम का बाल भी बांका नहीं कर पाई थी ठीक उसी तरह नेपाल में आया भयानक भूकंप भी भोलेनाथ के पशुपतिनाथ मंदिर का कुछ नहीं बिगाड़ पाया।

यह हैरान करने वाली बात है कि बाबा भोलेनाथ के दोनों महत्त्वपूर्ण धाम इतनी भयानक प्राकृतिक आपदाओं से कैसे बच गए। पशुपतिनाथ मंदिर की अखंड ज्योति का विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है यह ज्योति एक प्रकार से भगवान शिव की निरंतर उपस्थिति का प्रतीक मानी जाती है। शिव भक्तों के लिए एक अद्भुत स्थान है। जहां लाखों भक्त हर वर्ष पूजा अर्चना के लिए आते हैं इस अखंड ज्योति का जलना केवल भगवान शिव के प्रति श्रद्धा का प्रतीक ही नहीबल्कि यह इस बात का भी संकेत है कि ईश्वर की शक्ति कभी समाप्त नहीं होती।

पशुपतिनाथ मंदिर की यह ज्योति 24 घंटे 365 दिन जलती रहती है और इसका रखरखाव बहुत ही सावधानी से किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह ज्योति उन भक्तों के लिए एक आत्मिक मार्गदर्शन का कार्य करती है जो शिव की उपासना करते हैं और शांति की तलाश में है। यह अखंड ज्योति कभी नहीं बुझती इसे निरंतर जलता हुआ माना जाता है और इसका जलना भगवान शिव के अनंत और अडिग सत्ता का प्रतीक है। यह ज्योति ना केवल स्थानिक प्रकाश देती है बल्कि यह शाश्वत और दिव्य ऊर्जा का भी स्रोत है जो भक्तों के हृदय में शांति और विश्वास उत्पन्न करती है। शिव की यह ज्योति अनंत काल तक जलती रहेगी और भक्तों को उनकी दिव्य कृपा प्राप्त होती रहेगी। एक प्राचीन भविष्यवाणी के अनुसार जब पशुपतिनाथ मंदिर का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा तब यह संसार भी समाप्त हो जाएगा। कहा जाता है कि जब तक यह मंदिर सुरक्षित रहेगा तब तक भगवान शिव इस सृष्टि की रक्षा करेंगे। लेकिन जिस दिन यह मंदिर पूरी तरह नष्ट होगा उस दिन महाप्रलय आएगा और पूरी धरती जलमग्न हो जाएगी।

पशुपतिनाथ मंदिर में स्थित शिवलिंग से एक विशेष प्रकार की ऊर्जा निकलती है जो वहां उपस्थित श्रद्धालुओं के मन को शांत करती है। जब मंदिर में घंटियां और शंख बजते हैं तो वहां एक विशेष प्रकार की ध्वनि तरंगे उत्पन्न होती हैं जो शरीर के सातों चक्रों को सक्रिय करती हैं।

बागमती नदी का जल मंदिर के शिवलिंग को विशेष ऊर्जा प्रदान करता है माना जाता है कि बागमती नदी के तट पर अंतिम संस्कार करने से आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है। यहां विशेष प्रकार की वैदिक विधियों से अंतिम संस्कार किया जाता है। पशुपतिनाथ मंदिर केवल अपनी भव्यता और धार्मिक महत्व के लिए ही प्रसिद्ध नहीं है बल्कि इसके आसपास कई रहस्यमय गुफाएं और स्थान भी मौजूद हैं जिनका संबंध तपस्वी योगियों और प्राचीन संतों से है। कहा जाता है कि पशुपतिनाथ मंदिर के नीचे कई रहस्यमय गुफाएं हैं जिनमें प्राचीन काल में मुनियों ने ध्यान साधना की थी इन गुफाओं में में आज भी साधु संत साधना करने जाते हैं। प्राचीन समय में गुरु गोरखनाथ और उनके शिष्य मत्स इंद्रनाथ ने यहां तपस्या की थी इन गुफाओं में विशेष ऊर्जा प्रवाहित होती है।

पशुपतिनाथ मंदिर के पास बहने वाली बागमती नदी के तल में एक रहस्यमय खजाना छिपा हुआ है यह खजाना मंदिर के निर्माण काल में छिपाया गया था ताकि इसे आक्रमणकारियों से बचाया जा सके कई संतों का मानना है कि यह खजाना केवल सच्चे योगियों को ही प्राप्त हो सकता है।

पशुपतिनाथ मंदिर में कई गुप्त द्वार भी मौजूद हैं जिनके पीछे कई रहस्य छिपे हैं कहा जाता है कि इन द्वारों के पीछे गुप्त मार्ग हैं जो हिमालय के अन्य पवित्र स्थलों तक जाते हैं।

महाशिवरात्रि और अन्य विशेष अवसरों पर अघोरी साधु यहां आकर तंत्र साधना करते हैं। वे बागमती नदी के किनारे विशेष अनुष्ठान करते हैं जिसे केवल कुछ चुनिंदा लोग ही देख पाते हैं। कहा जाता है कि इन साधनाएं के माध्यम से वे अपनी आध्यात्मिक शक्तियों को जागृत करते हैं। इस मंदिर में आने वाले कई श्रद्धालु और साधु यहां अलौकिक अनुभवों की बात करते हैं। मंदिर मे रात के समय अदृश्य मंत्रों की ध्वनि सुनाई देती हैकुछ साधुओं का कहना है कि उन्होंने मंदिर परिसर में भगवान शिव का प्रकाश रूप में दर्शन किया है। कई प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि पशुपतिनाथ मंदिर और कैलाश पर्वत के बीच एक आध्यात्मिक मार्ग है।

बागमती नदी की धारा कभी सूखती नहीं चाहे कितनी गर्मी क्यों ना हो बागमती नदी नेपाल की प्रमुख नदियों में से एक है जो काठमांडू घाटी से होकर बहती है इसे काठमांडू घाटी की जीवन रेखा माना जाता है। यह नदी धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। इसके पानी को शुद्ध और पवित्र माना जाता है। बागमती नदी की धारा कभी भी पूरी तरह से सूखती नहीं है चाहे इसका जलस्तर बढ़े या घटे इसके कई कारण हैं बागमती नदी का रास्ता काफी लंबा है जो काठमांडू घाटी से निकलकर नेपाल के अन्य क्षेत्रों से होते हुए दक्षिण की ओर बहते हुए भारतीय राज्य बिहार में गंगा नदी में मिल जाती है।

बागमती नदी के किनारे कई ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल स्थित हैं जिनमें से सबसे प्रमुख पशुपतिनाथ मंदिर है बागमती नदी के तट पर ही पशुपतिनाथ मंदिर स्थित है और नदी हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए एक पवित्र नदी मानी जाती है। बागमती नदी का उल्लेख महाभारत और अन्य प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है जहां इसे पवित्र नदी के रूप में पूजा जाता था मंदिर के पुजारियों का कहना है कि जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से यहां मन्नत मांगता है उसकी हर इच्छा पूरी होती है। जब भगवान शिव ने पशुपतिनाथ रूप में धरती पर अवतार लिया तब बागमती नदी का अवतरण भी हुआ था। बागमती नदी का पानी पवित्र होता है और इसे हिंदू धर्म में शुद्धि और पापों के नाश के लिए महत्त्वपूर्ण माना जाता है। इस नदी का हिंदू धर्म से गहरा संबंध है और यह हिंदू अनुयायियों के लिए एक अत्यंत पूजनीय नदी मानी जाती है।

पशुपतिनाथ मंदिर और बागमती नदी का इतिहास धार्मिक सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है यह स्थान ना केवल नेपाल में बल्कि हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए विश्व भर में एक पवित्र स्थल के रूप में प्रसिद्ध है मंदिर में भगवान शिव की पूजा विशेष रूप से अर्धनारीश्वर रूप में होती है जहां शिव और उनकी पत्नी पार्वती दोनों की उपस्थिति दर्शाई जाती है। पशुपतिनाथ मंदिर और उसका शिवलिंग ना केवल एक धार्मिक स्थल हैबल्कि यह विश्व भर के भक्तों के लिए एक तीर्थ स्थान भी है।

पशुपतिनाथ मंदिर में सुबह की आरती सुबह 5:00 बजे से दोपहर 12 बजे तक और शाम की आरती शाम 5:00 बजे से 7:00 बजे तक होती है। सुबह 4:00 बजे से शाम 7:00 बजे तक मंदिर के भीतरी क्षेत्र में प्रवेश कर सकते हैं। मंदिर बंद होने का समय निश्चित नहीं है इसे मौसम के अनुसार बदला जाता है। नवंबर के दौरान मंदिर शाम 6:30 पर बंद हो जाता हैवहीं गर्मियों में रात 8 बजे तक इसे बंद किया जाता है पशुपतिनाथ मंदिर में भक्तों को गर्भगृह में प्रवेश की अनुमति नहीं है। सुबह अभिषेक का समय 9:00 बजे से 11 बजे तक होता है। अभिषेक के समय मुख्य मंदिर के चारों दरवाजे खोल दिए जाते हैं इस प्रकार अभिषेक की विशेष पूजा के दौरान शिवलिंग के चारों मुख भक्तों को दिखाई देते हैं।

पशुपतिनाथ मंदिर में जाने का सबसे अच्छा समय काफी हद तक व्यक्तिगत प्राथमिकताओं और व्यक्ति द्वारा चाहे जाने वाले अनुभव के प्रकार पर निर्भर करता है अगर आप हल्के मौसम के महीने में जाना चाहते हैं तो सितंबर से नवंबर फिर मार्च से मई तक इन महीनों में मौसम सुहाना रहता है।

पशुपतिनाथ मंदिर हिंदू तीर्थ यात्रियों के लिए बहुत महत्व रखता है और कई लोग कैलाश पर्वत पर जाने के बाद इसे अपनी आध्यात्मिक यात्रा के हिस्से के रूप में करना चुनते हैं। माना जाता है कि यह मंदिर भगवान शिव का पवित्र निवास है और यहां श्रद्धांजलि अर्पित करना कैलाश मांग सरोवर यात्रा का एक सार्थक समापन हो सकता है।

भारत से पशुपतिनाथ मंदिर पहुंचने का सबसे अच्छा तरीका काठमांडू तक की फ्लाइट लेना है त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा काठमांडू शहर से सिर्फ 5 किमी दूर है दिल्ली से काठमांडू की सभी फ्लाइट डायरेक्ट है दिल्ली से काठमांडू की उड़ान की दूरी लगभग 800 किमी है जो आसानी से दो घंटे से भी कम समय में तय की जाती है लेकिन ध्यान रखें काठमांडू के बदलते मौसम के कारण कभी-कभी आपकी फ्लाइट डिले हो सकती है।

आप ट्रेन से जाना चाहते हैं तो भारत और नेपाल के बीच कोई सीधी रेल सेवा नहीं है ऐसे में पहले आपको दिल्ली से गोरखपुर तक ट्रेन से यात्रा करनी होगी फिर वहां से सनौली के लिए बस लेनी पड़ेगी आप सड़क मार्ग से भी काठमांडू जा सकते हैं इसके बाद नेपाल बॉर्डर से काठमांडू के लिए दूसरी बस लेनी होगी भारत से सड़क मार्ग से यात्रा करने वाले पर्यटकों के लिए चार बॉर्डर क्रॉसिंग है। दिल्ली से का काठमांडू तक की कुल दूरी लगभग 1300 किलोमीटर है जिसे बस या कार से तय किया जा सकता है यदि आप हिंदू हैं तो अपने साथ कोई मान्य पहचान पत्र आईडी लेकर जाएं।

मंदिर की पवित्रता का सम्मान बनाए रखें और शालीन कपड़े पहने फोटोग्राफी प्रतिबंधों का सम्मान करें कुछ क्षेत्रों में फोटोग्राफी की अनुमति नहीं होती खासकर धार्मिक समारोहों के दौरान मंदिर परिसर में शांति और सम्मानजनक व्यवहार बनाए रख रखें यह एक पूजा स्थल है। मंदिर की पवित्रता बनाए रखें इन सभी बातों का ध्यान रखते हुए आप पशुपतिनाथ मंदिर की पवित्रता में योगदान दे सकते हैं और एक आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक रूप से समृद्ध अनुभव प्राप्त कर सकते हैं दोस्तों अगर आपको यह वीडियो पसंद आई हो तो लाइक करें शेयर करें और चैनल को सब्सक्राइब करना ना भूले क्योंकि आगे भी आपको इस चैनल पर ऐसी डॉक्यूमेंट्री वीडियो देखने को मिलती रहेंगी।

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